बच्चों को कितने बजे बिस्तर पर जाना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:26

बचपन में सभी शिशु बिस्तर में पेशाब कर देते हैं और ऐसा होना आम है। वहीं, कुछ बच्चे पांच-छह वर्ष के हो जाने पर भी बिस्तर गीला कर देते हैं। अगर आपका बच्चा भी ऐसा कर रहा है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। बेशक, इस मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका इलाज नहीं हो सकता। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों में बिस्तर गीला करने की समस्या पर ही विस्तार से चर्चा करेंगे। इस लेख में आप बच्चों की इस समस्या के कारण, निदान और इलाज के बारे में अच्छी तरह समझ पाएंगे।

आइए, सबसे पहले आपको यह समझाएं कि बिस्तर गीला करने का मतलब क्या है।
बिस्तर गीला करने का मतलब क्या है?

बच्चा होश में तो अपने पेशाब पर नियंत्रण रख पाता है, लेकिन नींद में नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसा जब पांच साल से ज्यादा उम्र के बच्चे के साथ होता है, तो उसे बिस्तर गीला करना (nocturnal enuresis) कहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, पांच साल से ज्यादा उम्र के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे नींद में पेशाब करने की बीमारी से ग्रस्त होते हैं। 10 वर्ष से ज्यादा उम्र के 5 प्रतिशत और 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के 1-2 प्रतिशत बच्चे बेड वेटिंग से पीड़ित होते हैं (1)।

लेख के अगले भाग में जानिए कि ये कितना आम है।
बच्चों में बिस्तर गीला करना कितना आम है?

भारत में लगभग 7.61-16.3 प्रतिशत बच्चे (5 से 12 साल की उम्र तक) नींद में पेशाब करने की समस्या से पीड़ित हैं। इसमें ज्यादातर बच्चे पांच से आठ साल तक की उम्र के हैं और यह समस्या लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्यादा पाई जाती है (2)।

आगे जानिए कि बिस्तर गीला करने के कितने प्रकार होते हैं।
बिस्तर गीला करने के प्रकार

बेड वेटिंग की समस्या को दो भागों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार है (3):

प्राइमरी बेड वेटिंग (Primary nocturnal enuresis) : जब बच्चा बचपन से ही बिस्तर गीला करता आया हो और पांच वर्ष का होने के बाद भी यह जारी रहे, तो इसे प्राइमरी बेड वेटिंग कहा जाता है।

सेकंडरी बेड वेटिंग (Secondary nocturnal enuresis) : इस स्थिति में बच्चा लगभग छह महीनों के लिए बिस्तर गीला करना बंद कर देता है, लेकिन उसके बाद यह समस्या फिर शुरू हो जाती है।

अगर आप भी यह सोचते हैं कि आपका बच्चा बिस्तर गीला क्यों करता है, तो लेख के अगले भाग में इसका जवाब है। पहले जानिए प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण।
प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण

नींद में बिस्तर गीला करना बच्चों की कोई शरारत या आलस नहीं है, बल्कि इस समस्या के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (1):

मूत्राशय की समस्याएं : कुछ बच्चों का मूत्राशय बहुत छोटा होता है, जिस कारण वो पेशाब की ज्यादा मात्रा पर नियंत्रण नहीं रख पाते। ऐसे में तरल पदार्थ का ज्यादा सेवन करने से मूत्राशय पर दबाव बन सकता है और बच्चों में मूत्रस्राव हो सकता है। इसके अलावा, कुछ बच्चों को मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सीखने में भी समय लगता है।

एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन : ये हॉर्मोन शरीर में पेशाब पर नियंत्रण रखते हैं (4)। इनकी कमी से बच्चों में अक्सर बिस्तर गीला करने की समस्या आ सकती है।

गहरी नींद : कई बार गहरी नींद की वजह से बच्चों को मूत्राशय पर दबाव महसूस नहीं होता और उन्हें बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस नहीं हो पाती। यह भी एक कारण हो सकता है कि बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं।

प्राइमरी बेड वेटिंग के कारण जानने के बाद, आइए आपको बताएं कि सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण क्या हो सकते हैं।
सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण

सेकंडरी बेड वेटिंग के कारण प्राइमरी बेड वेटिंग के कारणों से कुछ अलग हो सकते हैं, जैसे (1) (5):

यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण
मधुमेह
किडनी की समस्या
स्लीप एपनिया से पीड़ित (6)
कब्ज के कारण
पिनवर्म के कारण
बढ़ा हुआ थाइराइड हॉर्मोन

नींद में पेशाब करने की बीमारी के पीछे कुछ जोखिम कारक भी हो सकते हैं, जिनके बारे में हम लेख के अगले भाग में आपको बताएंगे।
बिस्तर गीला करने के जोखिम कारक

बेड वेटिंग की समस्या के पीछे निम्न जोखिम कारक हो सकते हैं (1) (7):

अगर बच्चे के माता-पिता या दोनों में से कोई एक बेड वेटिंग की समस्या से पीड़ित रहा हो।

लड़कियों की तुलना में यह समस्या लड़कों को ज्यादा होती है।

पांच से आठ साल की उम्र के बच्चों में यह समस्या ज्यादा होती है।

कमजोर आर्थिक स्थिति और ग्रामीण क्षेत्रों में रहना।

भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक कारक से पीड़ित जैसे स्ट्रेस या अवसाद।

किसी भी प्रकार की पारिवारिक की समस्या।

सिर्फ बिस्तर गीला करने से बेड वेटिंग की समस्या का निदान नहीं होता। इसके लिए मेडिकल चेकअप की जरूरत होती है, जिसके बारे में हम लेख के अगले भाग में बता रहे हैं। आगे जानते हैं कि बेड वेटिंग का निदान किस प्रकार किया जा सकता है।
बिस्तर गीला करने का निदान

आपका बच्चा बिस्तर गीला क्यों करता है, इसके पीछे मौजूद कारणों का पता निदान की मदद से लगाया जा सकता है। इसके लिए निम्न प्रकार की प्रक्रिया की जाती हैं (8):

मूत्राशय डायरी : इसमें आपको यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपका बच्चा पानी या अन्य पेय पदार्थ का कितना सेवन करता है और बाथरूम का उपयोग कितनी बार करता है। इसके अलावा, आपको यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि महीने में बच्चा कितनी बार बिस्तर गीला करता है। सही निदान के लिए आपको बच्चे से जुड़ी यह पूरी जानकारी डॉक्टर को देनी होगी।

यूरिन टेस्ट : डॉक्टर आपके बच्चे की पेशाब की जांच कर सकते हैं। इस जांच से पेशाब में मौजूद बैक्टीरिया या संक्रमण के बारे में पता लगाया जा सकता है। पेशाब में सफेद रक्त कोशिकाओं और बैक्टीरिया का होना यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण का एक लक्षण हो सकता है।

अन्य स्कैन : डॉक्टर आपके बच्चे के कुछ और स्कैन भी कर सकते हैं, जैसे – अल्ट्रासाउंड, एमआरआई (MRI), यूरोडायनामिक टेस्टिंग (Urodynamic testing)। इन स्कैन की मदद से बच्चे में मौजूद किसी जन्म दोष या यूरिनरी ट्रैक्ट में किसी ब्लॉकेज के बारे में पता लगाया जा सकता है। इन स्कैन से मूत्राशय के आकार, कमजोर मांसपेशियों और मांसपेशियों की गतिविधियों के बारे में पता लगाया जा सकता है।

आगे जानिए कि अगर समय रहते नींद में पेशाब करने की बीमारी के कारण किस प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
बिस्तर गीला करने की जटिलताएं

हालांकि, बिस्तर गीला करने की वजह से किसी गंभीर शारीरिक जटिलताओं का सामना नहीं करता पड़ता, लेकिन नीचे बताई गई कुछ समस्याएं आपके सामने जरूर आ सकती हैं (9):

स्किन रैशेज : रात भर गीले बिस्तर के सम्पर्क में रहने की वजह से बच्चे के गुप्तांग और उसके आसपास रैशेज हो सकते हैं। ऐसा उन बच्चों के साथ भी हो सकता है, जो रात भर डायपर पहन कर सोते हैं।

मनोवैज्ञानिक जटिलताएं : बच्चे के मन में बार-बार बिस्तर गीला करने को लेकर शर्मिंदगी का भाव पैदा हो सकता है। इस वजह से उनके आत्मसम्मान में कमी आ सकती है।

आत्मविश्वास की कमी : पेशाब पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से बच्चों के पास से अक्सर पेशाब की बदबू आने लगती है। इस वजह से उन्हें लोगों के बीच उठने-बैठने में आत्मविश्वास की कमी होने लगती है।

लेख के अगले भाग में जानिए बिस्तर गीला करने से बचाव।
बेड वेटिंग की समस्या होने से रोकने या बचाव के टिप्स | Bistar Gila Na Karne Ke Upay

बेड वेटिंग की समस्या से अपने बच्चे को बचाने के लिए आप नीचे बताए गए बचाव उपाय अपना सकते हैं (10):

बच्चे में हर दो से तीन घंटे में बाथरूम जाने की आदत डालें। कोशिश करें कि वह दिन में कम से कम चार से सात बार बाथरूम जाए।

कोशिश करें कि बच्चा रात के समय ज्यादा पेय पदार्थों का सेवन न करे, बल्कि सुबह उठने से लेकर शाम 5 बजे तक अच्छी तरह पानी पिए।

बच्चों को कॉफी, साइट्रस जूस और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स पीने से रोकें। ये शरीर में ज्यादा यूरिन का उत्पादन कर सकते हैं।

अगर बच्चा कब्ज से पीड़ित है, तो उसका जल्द इलाज करवाएं।

इन बचाव उपाय के अलावा जीवनशैली में कुछ परिवर्तन लाने से भी बेड वेटिंग की समस्या से आराम मिल सकता है। लेख के अगले भाग में हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे।
बच्चों में बेडवेटिंग को रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव

बच्चों की जीवनशैली में कुछ परिवर्तन ला कर आप उनकी बिस्तर गीला करने की समस्या का हल कर सकते हैं। ये परिवर्तन कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (1):

रात को सोने से पहले बच्चे की बाथरूम जाने की आदत डलवाएं।

उसे रात के खाने से पहले पेय पदार्थों में जूस या किसी और ड्रिंक की जगह सूप पीने की आदत डलवाएं।

बच्चे को एक बार में पानी का पूरा गिलास पीने की आदत डलवाएं। बार-बार में थोड़ा-थोड़ा पानी पीने से मूत्राशय पर दबाव पड़ेगा।

डॉक्टर की सलाह के अनुसार इस बात का टाइम टेबल बनाएं कि पानी पीने के कितने समय बाद बच्चे को बाथरूम भेजना है और वैसा ही करें। इस प्रकार को बच्चे को धीरे-धीरे समझ आने लगेगा कि उसका मूत्राशय कितने समय में भर जाता है और उसे पेशाब करने की जरूरत कब पड़ती है।

बच्चों को डांटने की जगह उनसे बात करें और उन्हें समझाएं कि यह एक समस्या है जिससे राहत पाई जा सकती है। डांटने से बच्चा घबरा सकता है और उसे ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है।

उपचार के दौरान, जब-जब बच्चा रात भर बिस्तर गीला न करे, तो उसे शाबाशी दें। इससे उसका आत्मबल बढ़ेगा और समस्या का उपचार जल्द हो पाएगा।

जीवनशैली में बदलाव लाने के साथ कुछ चिकित्सीय इलाज भी जरूरी हैं। आगे जानिये बिस्तर गीला करने के इलाज के बारे में।

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