प्रेगनेंसी टिप्स?pregnancytips.in

Posted on Mon 21st Jun 2021 : 07:32

प्रेगनेंसी के नौ महीनों को इन तरीकों से बनाएं हेल्‍दी

कंसीव करने के बाद नौ महीने की प्रेगनेंसी को हेल्‍दी बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। प्रेगनेंट होने के बाद दिमाग में बस यही आता है कि अब मुझे क्‍या खाना चाहिए, कैसे एक्‍सरसाइज करनी चाहिए और किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए।

सांस फूलना खासतौर पर प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में नॉर्मल बात है और गर्भावस्‍था के शुरुआती समय में भी ऐसा होता है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्‍था की पहली तिमाही से सांस लेने में दिक्‍कत महसूस हो सकती है।अगर सीढ़ी चढ़ने जैसे काम करने पर सांस फूल रहा है तो ये सामान्‍य बात है, लेकिन अगर आपको अस्‍थमा जैसी कोई सांस की बीमारी है तो इसकी वजह से आपको परेशानी उठानी पड़ सकती है।यह भी पढ़ें : गर्भावस्‍था में दांत में दर्द के इलाज के लिए अपनाएं घरेलू नुस्‍खे
अगर आप पहली बार मां बन रही हैं तो आपके लिए यह जानना और भी ज्‍यादा जरूरी हो जाता है कि हेल्‍दी प्रेगनेंसी के लिए आपको किन बातों का ध्‍यान रखना चाहिए। यहां हम आपको गर्भावस्‍था को हेल्‍दी बनाए रखने और नौ महीनों के दौरान शिशु के स्‍वस्‍थ विकास के लिए जरूरी टिप्‍स बता रहे हैं।

संतुलित आहार
प्रेगनेंसी के दौरान ही नहीं बल्कि कंसीव करने से पहले और डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को अपनी डायट का ध्‍यान रखना होता है। प्रेगनेंसी में पौष्टिक आहार लेने से शिशु के मस्तिष्‍क का सही विकास होने में मदद मिलती है और जन्‍म के समय शिशु का वजन भी ठीक रहता है। संतुलित आहार से शिशु में जन्‍म विकार,
प्रेगनेंसी में एनीमिया, मॉर्निंग सिकनेस आदि से भी बचाव होता है। जंकफूड खाने से बचें।
प्रेगनेंसी में सांस फूलने को न करें नजरअंदाज, कारण कर देंगे हैरान

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सांस फूलना खासतौर पर प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में नॉर्मल बात है और गर्भावस्‍था के शुरुआती समय में भी ऐसा होता है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्‍था की पहली तिमाही से सांस लेने में दिक्‍कत महसूस हो सकती है।

अगर सीढ़ी चढ़ने जैसे काम करने पर सांस फूल रहा है तो ये सामान्‍य बात है, लेकिन अगर आपको अस्‍थमा जैसी कोई सांस की बीमारी है तो इसकी वजह से आपको परेशानी उठानी पड़ सकती है।


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अगर सांस फूलने के साथ कोई अन्‍य लक्षण नहीं दिख रहा है तो आपको चिंता करने की जरूरत नहींं है और शिशु को प्‍लेसेंटा से पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन मिल रहा है इसलिए शिशु को कोई नुकसान नहीं होगा। गहरी सांस लेने से भ्रूण ऑक्‍सीजन युक्‍त खून मिलेगा।


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प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में सांस फूलने के कारणइस समय भ्रूण इतना बड़ा नहीं हुआ होता है कि उसकी वजह से सांस लेने में दिक्‍कत आए।

पेट से फेफड़ों और दिल को अलग करने वाला ऊतक का मस्‍कुलर बैंड डायफ्राम 4 प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में 4 सेमी तक बढ़ जाता है। डायफ्राम की मूवमेंट से फेफड़ों में हवा भरने में मदद मिलती है।

डायफ्राम में बदलाव के साथ-साथ प्रेगनेंट महिला को अक्‍सर प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन बढ़ने की वजह से तेज सांसें आने लगती हैं।
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दूसरी तिमाही में गर्भवती महिला को सांस फूलने की दिक्‍कत ज्‍यादा स्‍पष्‍ट महसूस हो सकती है। गर्भ में बढ़ रहे भ्रूण की वजह से इस समय सांस फूल सकती है। हालांकि, दिल के काम करने के तरीके में कुछ बदलाव आने के कारण भी ऐसा हो सकता है।

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में खून की मात्रा तेजी से बढ़ने लगती है। इस खून को पूरे शरीर और प्‍लेसेंटा में पहुंचाने के लिए दिल को ज्‍यादा काम करना पड़ता है।

दिल के ज्‍यादा काम करने की वजह से प्रेगनेंट महिला को सांस लेने में दिक्‍कत हो सकती है।


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प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही में शिशु के सिर की पोजीशन की वजह से सांस लेने में आसानी या और ज्‍यादा दिक्‍कत हो सकती है। शिशु के घूमने और पेल्विस की तरफ आने से पहले उसका सिर पसलियों के अंदर और डायफ्राम पर दबाव महसूस हो सकता है जिससे सांस लेने में दिक्‍कत होती है।

नेशनल वुमेंस हैल्‍थ रिसोर्स सेंटर के मुताबिक, प्रेगनेंसी के 31वें हफ्ते और 34वें हफ्ते में इस तरह की सांस फूलने की दिक्‍कत होती है।




उबले हुए अंडे
प्रेगनेंसी के नौ महीनों में शरीर शिशु के पोषण और विकास के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा होता है। इस समय में शरीर को पर्याप्‍त मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है जिसे अंडे से पूरा किया जा सकता है। इससे मां और बच्‍चे दोनों की प्रोटीन की आवश्‍यकता को पूरा किया जा सकता है।
हालांकि, आधे उबले हुए (हाफ बॉयल एग) या अधपके अंडे खाने से साल्‍मोनेला का खतरा रहता है। यह एक प्रकार का बैक्‍टीरियल संक्रमण है जो आंतों को प्रभावित करता है। इसमें उल्‍टी, दस्‍त, ऐंठन, बुखार, सिरदर्द और मल में खून आता है।

कैसी एक्‍सरसाइज करें
स्‍वस्‍थ और फिट रहने के लिए एक्‍सरसाइज से बेहतर और कोई तरीका नहीं है। प्रेगनेंसी में बढ़ने वाले वजन को भी एक्‍सरसाइज से कंट्रोल किया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो नियमित व्‍यायाम से मां और शिशु दोनों स्‍वस्‍थ और सुरक्षित रहते हैं लेकिन गर्भावस्‍था में सही एक्‍सरसाइज चुनना बहुत जरूरी है।

सप्‍ताह में कम से कम 150 मिनट मॉडरेट इंटेसिंटी एक्‍सरसाइज करें। रोज कुछ मिनट पैदल चलें। ब्रीदिंग एक्‍सरसाइज से भी फायदा होगा, लेकिन भारी वजन उठाने वाली और कठिन व्‍यायाम करने से बचें।

अच्‍दी आदतें अपनाएं
स्‍वस्‍थ जीवनशैली का सीधा प्रभाव बच्‍चे की सेहत पर पड़ेगा। गर्भवती महिला को तंबाकू, सिगरेट और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। प्रेगनेंसी में शराब पीने से मां की रक्‍त वाहिकाओं से एल्‍कोहल शिशु की रक्‍त वाहिकाओं में पहुंच सकता है जिससे फीटल एल्‍कोहल सिंड्रोम हो सकता है।
ऐसा प्रेगनेंसी के नौ महीनों में लगातार शराब पीने से होता है। सिगरेट शिशु तक पहुंचने वाले ऑक्‍सीजन और रक्‍त प्रवाह को प्रभावित कर सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप गर्भावस्‍था के दौरान इन सब चीजों से दूर रहें।

स्‍ट्रेस
स्‍वास्‍थ्‍य का सबसे बड़ा दुश्मन है तनाव यानी स्‍ट्रेस। स्‍ट्रेस का असर गर्भवती महिला और उसके बच्‍चे दोनों पर पड़ता है। मानसिक और शारीरिक तनाव से दूर रह कर प्रेगनेंसी और प्रसव के दौरान कई संभावित जटिलताओं से बचा जा सकता है।
स्‍ट्रेस के कारण कंसीव करने में भी दिक्‍कत आ सकती है और यहां तक कि प्रीमैच्‍योर लेबर भी हो सकता है। यही वजह है कि प्रेगनेंट महिलाओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है।

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